Thursday, October 2, 2014

साईं इतना दीजिए ... Today's Version

600 वर्ष पहले संत कबीर कह गये थे कि सुखी जीवन के लिए भगवान से इतना ही चाहिए -

साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाए
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए

आज शायद हम इस प्रकार की प्रार्थना करेंगे -

साईं इतना दीजिए जामे कुटुम समाए
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए
साधु न भूखा जाए तो उःलोक में पुण्य कमाऊं
पर ऐसा क्या मैं दान करूँ जो कुछ तो tax बचाऊँ
और इक आशीर्वाद समझकर दीजो एक मकान
2-Bedroom कमस्कम हो कुछ ऐसा दो वरदान
ऐसा दो वरदान प्रभु तकदीर मेरी खुल जाए
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए

पग पग पैदल चलने को तो Gym जाता है ज़माना
भक्त सहज से करे भ्रमण, एक अच्छी car दिलाना
छुट्टी इतनी मिले, वर्ष में सैर करूँ दो बार
एक काशी हो आऊँ, और एक सात समंदर पार
Car, Flat तो माँग चुका, पर भगवन तुम हो great
सोच रहा हूँ माँग ही लूँ इक iPhone की भेंट
iPhone की भेंट मिले, बस सब संकट मिट जाएँ
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए

काफ़ी माँग चुका हूँ लेकिन कैसे करूँ relax
जीना क्या अब मरने पर भी सुना है लगता tax
ऐसी किरपा करो प्रभु मैं इतना द्रव्य कमाऊं
आज की रोटी आज चखूं, कुछ कल के लिए बचाऊं
बस ये अरज है - really, गरज है - मन को आए चैन
किरपा करके इक दिलवा दो अच्छा Pension Plan
अच्छा Pension Plan मिले तो मन मेरा सुख पाए
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए

रोटी कपड़ा मकां भये अब भूतकाल की बात
अब तो दाता सब कुछ देता, फिर भी फैले हाथ?
सुख को अनदेखा करें, सब दुख का करें ख़याल
छोटी हो गयी ज़िंदगी, बस लंबे हैं साल
ऐसा दो वरदान प्रभु हम सोते सब जग जाएँ
झोली में जो बख्शा है, हम उसका जशन मनाएँ
उसका जशन मनाएँ सभी तो दुख सुख में खो जाए
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु ना भूखा जाए

                                                                                         
- अभिजीत देवगीरिकर
   (A Dushera Post)
                   

Friday, January 17, 2014

कधीतरी ...


कधीतरी ...

एकच शब्द पुन्हा-पुन्हा म्हणताना
तुझे उच्चार ठीक करताना
हे ही वाटतं -की तुझं बोबड बोलणं
शब्दांच्या लयात डोलनं
Miss करीन, कधीतरी

ऑफीस हून परत येताच
बूट काढायच्या ही आधी तुला घेताच
हे ही वाटतं -की जेव्हां "Hi Dad" म्हणून welcome करशील, माउ
तेव्हां दारा मागे लपून केलेला तुझा "भौ"
Miss करीन, कधीतरी

"ह्याच बाटलीचं पाणी प्यायचंय" "ह्याच खुचीर्त बसायचंय"
असे हट्ट िकतीही डोक्यात िशरले, तरीही
तू समजुत्दार होशील जेव्हां
तुझे हे िनरथर्क हट्ट तेव्हां
Miss करीन, कधीतरी

जेव्हां पुस्तक वाचता-वाचता स्वतः झोप
येईल आिण तुला जागं करायचा credit alarm घेईल
तेव्हां -झोप न आल्यावर पम्पम मधली लांब फेरी
घर येताच तू उठशील, हे माहीत असलं तरी
Miss करीन, कधीतरी


Wordsmith
(First Marathi post)